जगदलपुरबस्तर संभाग

ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व काछनगादी पूजा विधान में काछनदेवी ने दी निर्विघ्न बस्तर दशहरा पर्व मनाने की अनुमति

जगदलपुर =21 सितम्बर विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का एक महत्वपूर्ण काछनगादी पूजा विधान रविवार को सम्पन्न हुई। जिसमें स्थानीय मिरगान समाज की कुंवारी कन्या काछनदेवी कांटे की झूले पर सवार होकर बस्तर दशहरा पर्व को निर्विघ्न सम्पन्न होने के साथ अपनी अनुमति प्रदान करती हैं।

➡️काछनदेवी ने कांटों के झूले में झूलकर दी निर्विघ्न आयोजन की अनुमति

विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व का प्रमुख विधान काछनगादी रस्म में काछनदेवी ने मिरगान समाज की एक कुमारी कन्या पर सवार होकर, बेल के कांटों से बने झूले में झूलकर दशहरे के निर्विघ्न आयोजन की अनुमति और आशीर्वाद प्रदान किया। काछनदेवी से बस्तर के माटी पुजारी श्री कमलचंद भंजदेव ने बस्तर दशहरा के निर्विघ्न आयोजन की अनुमति मांगी। इस अवसर पर वन मंत्री श्री केदार कश्यप, सांसद एवं अध्यक्ष बस्तर दशहरा समिति श्री महेश कश्यप, जगदलपुर विधायक श्री किरण देव, महापौर श्री संजय पांडे, अन्य जनप्रतिनिधियों सहित बस्तर दशहरा पर्व के परम्परागत सदस्य मांझी-चालकी, नाइक-पाइक, मेंबर-मेंबरिन, पुजारी-गायता सहित कमिश्नर बस्तर श्री डोमन सिंह, आईजी श्री सुंदरराज पी, कलेक्टर श्री हरिस एस, पुलिस अधीक्षक श्री शलभ सिन्हा, अपर कलेक्टर श्री सीपी बघेल और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

➡️काछनगादी रस्म का महत्व

बस्तर दशहरे में यह रस्म अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके बिना बस्तर दशहरे की शुरुआत नहीं होती। मान्यता है कि रण की देवी काछनदेवी, आश्विन अमावस्या के दिन पनका जाति की एक कुंवारी कन्या के शरीर में प्रवेश करती हैं। यह कन्या, जिसे देवी का स्वरूप माना जाता है, भंगाराम चौक स्थित काछनगुड़ी में बेल के कांटों से बने एक विशेष झूले पर लेटकर दशहरे के सफल आयोजन की अनुमति देती है। इस वर्ष भी, 10 साल की बच्ची पीहू दास पर सवार देवी ने यह आशीर्वाद दिया। ज्ञात हो कि बस्तर दशहरा पर्व यहां पर सामाजिक समरसता का एक अनुपम उदाहरण है और बस्तर के स्थानीय विभिन्न समाजों के लिए बस्तर दशहरा पर्व में पृथक-पृथक दायित्व बंटे हुए हैं जिसे सभी समाजों के सदस्यों द्वारा पूरी तरह से सहकार की भावना के साथ निर्वहन किया जाता है।

परंपराओं का पालन

काछनगादी पूजा विधान के लिए रविवार को सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थीं। काछनगुड़ी को फूलों और रोशनी से सजाया गया था। पुजारी और राज परिवार के सदस्य परंपरानुसार देवी से अनुमति लेने पहुंचे। जैसे ही काछनदेवी ने झूले पर लेटकर अनुमति दी, पूरा क्षेत्र बस्तर की आराध्य देवी मां दन्तेश्वरी के जयकारों और आतिशबाजी से गूंज उठा। इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालुगण इस अद्भुत दृश्य के साक्षी बने।

➡️गोल बाजार में की गई रैला देवी की पूजा

काछनगादी पूजा विधान के पश्चात रविवार शाम जगदलपुर के गोल बाजार में रैला देवी की पारंपरिक पूजा विधिवत संपन्न हुई। जिसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों सहित बस्तर दशहरा पर्व के परम्परागत सदस्य मांझी-चालकी, नाइक-पाइक, मेंबर-मेंबरिन सहित जिला प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारी, गणमान्य नागरिक और बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button