जनजातीय परपंराओं और संस्कृति का उजास- बस्तर पंडुम 2025
2 अप्रैल से जिला मुख्यालय में आगाज होगा बस्तर उत्सव

ओडिशा, तेलंगाना, असम, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक दल उत्सव में लगाएंगे चार चांद
प्रख्यात कवि डॉ. कुमार विश्वास की होगी काव्यात्मक प्रस्तुति
दंतेवाड़ा = 01 अप्रैल 2025। ’’बस्तर पंडुम 2025’’ के तहत बस्तर की समृद्ध जनजातीय परपंराओं और संस्कृतियों का बहुरंगी छटा माह अप्रैल के प्रथम सप्ताह में जिला मुख्यालय में बिखेरेंगी इस वृहद आयोजन की संपूर्ण तैयारियां लगभग पूर्ण हो चूकी है। वास्तव में वनांचलों में रहने वाले आदिवासी प्रकृति के साथ जीते है और इसी के साथ अपनी संस्कृति और सभ्यता का आनंद लेते है। इसी अमूर्त संस्कृति को सहेजने, संवारने, और अक्षुण्ण रखने के लिए राज्य शासन बस्तर पंडुम 2025 का अभिनव आयोजन कर रहा है।
इस बहुरंगी आयोजन के तहत 2 अप्रैल प्रातः 10 बजे जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा के हाई स्कूल ग्राउंड में होने वाले इस आयोजन में बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा सहित सुकमा, बीजापुर, कोंडागांव, नारायणपुर, कांकेर, बस्तर के आदिम जनजाति कला, संस्कृति का भव्य प्रदर्शनी एवं प्रतियोगिता होगी। इसके अंतर्गत बस्तर संभाग के सभी जिलों की टीमों द्वारा विभिन्न विधाओं की प्रदर्शनी के साथ-साथ देश के अन्य राज्य जैसे ओडिशा, तेलंगाना, असम, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक दल अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देगें यह कार्यक्रम 2 अप्रैल को संध्या 6 बजे से प्रारंभ होगा। इसी प्रकार 3 अप्रैल को प्रख्यात कवि एवं राम कथा वाचक डॉ. कुमार विश्वास द्वारा संध्या 6 बजे ’’बस्तर के राम’’ पर आधारित का काव्यात्मक प्रस्तुति और कविता पाठ किया जाएगा। इसके अलावा 4 अप्रैल को विभिन्न राज्यों से आए जनजातीय कलाकारों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की प्रतिस्पर्धा होगी जिसमें विजेताओं को पुरस्कृत किया जाएगा।
बस्तर संभाग के जिलों में इन प्रतिस्पर्धाओं के तहत इन क्षेत्रों में प्रचलित जनजातीय लोक नृत्य जैसे गेड़ी नृत्य, गौर नृत्य, ककसार, मादरी, दडामी, एबालतोर, दोरला, हुलकी पाटा, परब नाच, घोटुल पाटा, कोलांग पाटा, डंडारी नृत्यों के मध्य प्रतिस्पर्धा होगी। दूसरी और जनजातियों के लोक गीत यथा लिंगों पेन, रिलो गीत, कोटनी, जगार, मरम पाटा,का भी प्रस्तुतीकरण किया जाएगा। और बेहतर प्रस्तुतिकरण के आधार पर दल विजयी घोषित किए जाएगें। बस्तर उत्सव के अन्तर्गत जनजाति लोकनाट्य माओपाटा, भतरा नाट्य, प्रमुख जनजाति वाद्ययंत्र के तहत धनकुल, ढोल, चिटकुल, तोड़ी, अकूम, बावांसी, तिरडुडी, झाब, मांदर, मृंदग, बिरिया ढोल, सारंगी, गुदुग, मोहरी, सुलुड, मुंडा बाजा, चिकारा की भी प्रस्तुतियां की जाएगी।
बस्तर पंडुम 2025 में स्थानीय खान पान के मध्य भी प्रतियोगिताएं आयोजित होगीं। चुंकि बस्तर के संस्कृति में पारंपरिक पेय पदार्थो का बड़ा महत्व होता है जो जन्म, मरण, विवाह, जैसे सामाजिक अनुष्ठानों में भरपूर उपयोग किए जाते है इसके तहत सल्फी, ताड़ी, छिन्द रस, हाडि़या, पेज, कोसमा, से भी दर्षक रूबरू हो पाऐगें। इसके साथ ही स्थानीय प्रचलित व्यजंनों पर आधारित प्रतियोगिताएं भी रखी गई है।
शिल्प एवं चित्र कला की प्रस्तुतियों में घड़वा कला, मिट्टी कला, काष्ठ कला, पत्ता शिल्प, ढोकरा कला, लौह शिल्प, प्रस्तर शिल्प, गोदना शिल्प, भित्तिचित्र कला, शिसल शिल्प, कोड़ी शिल्प का संपूर्ण संभाग में बड़ा महत्व है। इस संबंध में भी क्षेत्रीय सांस्कृतिक दलों द्वारा पूरे उत्साह के साथ अपनी भागीदारी दर्शाई जाएगी। इसी प्रकार इस चार दिवसीय आयोजन में जनजातीय पारंपरिक आभूषणों जैसे लुरकी, करधन, सुतिया, पैरी, बांहूटा, बिछियां, ऐंठी, बन्धा, फुली, धमेल नांगमोरी, खोंचनी, मुंदरी, सुर्रा, सुता, पटा, पुतरी, ढार, नकबेसर की छटा से भी दर्शक रूबरू हो पाएगें। आदिम पर्वो के अन्तर्गत करसाड़ भीमा जतरा, बाली परब, दियारी तिहार, लक्ष्मी जगार, नवाखानी, माटी तिहार, लारूकाज, धनकुल, गोंचा पर्व, बीज बोहनी, छेरता पर्व की भी धूम बस्तर पंडुम में रहेगी।